A2Z सभी खबर सभी जिले कीLok Sabha Chunav 2024अन्य खबरेउत्तर प्रदेशताज़ा खबर

सोनभद्र। जनपद का कालापानी कहे जाने वाला रेणुकापार का भाठ क्षेत्र जनजाति का मंत्री होने के बावजूद तरस रहा विकास के लिए

*सोनभद्र : आदिवासी समाज, भाठ क्षेत्र के वनवासी आज भी विकास से वंचित हो बनें हुए हैं दोयम दर्जे के नागरिक*

महेश अग्रहरी संवादाता

सोनभद्र। जनपद का कालापानी कहे जाने वाला रेणुकापार का भाठ क्षेत्र देश की आजादी के बाद आज भी आवश्यक बुनियादी सुविधाओं से वंचित होता आया है। जाति का मंत्री होने के बाद भी विकास को तरसते रहे भाठ क्षेत्र के वाशिंदों का कोई भी हाल खबर लेने वाला फिलहाल दिखलाई नहीं दे रहा है। यहां के लोगगांव की ऊबड़ खाबड़ मिट्टी की सड़के
आजादी के 75 साल बाद भी रोटी-कपड़ा, मकान तथा सड़क के लिए तरस रहे हैं। ओबरा तहसील क्षेत्र का रेणुका पार का आदिवासी इलाका आकाश पानी गांव की जनता ने बीते लोकसभा चुनाव से पूर्व चुनाव बहिष्कार कर सरकार को चेतावनी दी थी कि सड़क नहीं तो वोट नहीं, परंतु लाख लिखने पढ़ने के बाद भी न तो गांव में झांकने आया ना ही ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान हो पाया है। चुनाव बीत चुका है लेकिन
अभी भी आदिवासी अंचलों में वहां के रहवासियों का सड़क निर्माण करायें जाने का अरमान अधूरा बना हुआ है। सड़क के अभाव में लोगों का चलना दुश्वार हो उठा है।

*जान जोखिम में डालकर ग्रामीण करते हैं आवागमन*

कड़िया से परसोई तथा दुरुह आदिवासी क्षेत्र को जोड़ने वाली सड़क खतरनाक गढ्ढे में तब्दील हो चुकी है। ग्रामीण जान जोखिम में डाल कर आवागमन करते हैं। सड़क न होने से ग्रामीण बरसात में भयंकर हादसा होने की आशंका जताते हैं। लोगों का कहना है कि क्या दर्जनों लोगों की मौत के बाद जागेगा शासन और जिला प्रशासन। बताते चलें कि ओबरा रेणुका पार नदी के उस पार सैकड़ो गांव आज भी रोड के बिना विकास से वंचित हैं। आए दिन सड़क न होने के वजह से बीमार, गर्भवती महिलाएं 108 एंबुलेंस की सेवा अथवा गांव के किसी भी प्रकार के साधनों की सेवा के माध्यम से शहर तक नहीं पहुंच पाती हैं। जिसके कारण डोली पालकी के माध्यम से उन्हें शहर तक लाया जाता है।

*जाति का जनप्रतिनिधि, मंत्री भी नहीं करा पा रहे हैं विकास*

शहर तक लाने में रास्ते में ही उनकी मौत हो जाती है, आकाश पानी गांव के नाथू गौड़ का कहना है कि उनकी बिरादरी का नेता मंत्री विधायक होने के बाद भी वह लोग विकास के लिए तरस रहे हैं। शर्मनाक है, सड़क के लिए कई बार उन लोगों ने अपने नेता से गुहार लगाई पर कोई सुनवाई नहीं हो पाई है। वह कहते हैं कि हम लोग की आवाज उनके दरवाजे से निकलते ही दब जाती है। गांव में जाने वाले मार्ग की स्थिति बरसात के महीने में देखते बनती है जब पैदल भी चलना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों की माने तो आजादी के 75 साल बाद भी मैंड़ाडाण, आकाशपानी, कन्हरा जैसे दर्जनों बीहड़, आदिवासी वाले गांव के लिए आज भी किसी प्रकार की कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलने से वंचित होते हुए आ रहें हैं। कभी भी कोई सरकारी अधिकारी कर्मचारी नेता मंत्री इन गांव का मुआयना नहीं करते, लेखपाल कानूनगो तथा सेक्रेटरी भी हमारे गांव आज तक नहीं आते क्योंकि गांव आने के लिए कोई रास्ता नहीं है। हम लोग आज भी आदिवासी कबीलों की जिंदगी जी रहे हैं। वहीं सरकार का मानना है की जाति स्तर पर टिकट देने से उनकी जाति और क्षेत्र का विकास होगा, परंतु टिकट पाने के बाद सीट जीतने के बाद जात के नाम पर राजनीति करने वाले नेता ना तो कभी उन गांवों का दौरा करते हैं ,ना तो कभी अपने उन आदिवासी गरीब जनजाति कबिलों का कोई ध्यान रखते हैं। सरकार का यह दावा खोखला होता चला जा रहा है की जाति स्तर पर क्षेत्र का विकास करने के लिए जातिगत टिकट देना उनके लिए और चुनौती होती जा रही है।
बहरहाल, सड़क से लेकर विभिन्न बुनियादी सुविधाओं से वंचित होते चले आ रहे रेणुका पार के आदिवासी वनवासी समाज के लोगों का कोई पुरसाहाल नहीं है।

Back to top button
error: Content is protected !!